आज का दिन थोड़ा खुशनुमा रहा । कई कस्टमर आए , जिसमे चार से सौदा पटा। सबकुछ अच्छा लगा । पैसे भी ठीक-ठाक मिल गये । वे उदार और भले लोग थे । शाम को एक मोटा मुर्गा फंसा तो मैंने और रेखा ने मिलकर मुजरा किया -
हाथ में मेंहदी मांग
सिंदुरवा बरबाद कजरवा हो गैले
बाहरे बलम बिना नींद ना आवे
बाहरे बलम बिना नींद ना आवे
उलझन में सवेरवा हो गईले
बाहरे चमके देवा गर्जे घनघोर
बदरवा
हो गइलेपापी पपीहा
बोलियाँ बोले पापी पपीहा बोलिया बोले पापी पपीहा
दिल धड़के सुवेरवा हो गईले
बाहरे बलम बिन नींद न आवे
उलझन में सुवेरवा हो गईले
अरे पहिले पहिले जब अइलीं गवनवा
saasoo से झगड़ा हो गईले
बाकें बलम पर...अहा अहाबांके बलम परदेसवा विराजें
उलझन में सुवेरवा हो गईले
हाथ में मेंहदी मांग सिंदुरवा
बरबाद कजरवा हो गइले

1 comment:
lagi raho, achcha prayas hai.
prabat ranjan kahanikar
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